शनिवार, 19 जनवरी 2013

भागवत कथा ही अमर कथा है




भगवान् शंकर ने , रस्ते में जो पहल गाँव आता है वहां अपने बैल नंदी को बैठाल दिया , अपने गले का नाग शेषनाग में बैठा दिया , चंदनवाड़ी , मायने , इससे आगे कोई आने पाए वहां जाके बैठ गए शिवजी जहाँ कोई पशु पक्षी भी नहीं था , जो थे , ताली बजा के उड़ा  दिए भगवान् कृष्ण ये चाहते थे कि ये कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाये , भगवान् शिव ये चाहते थे कि पारवती जी और शिवजी के बीच में रहे .. और भगवन कृष्ण जानते थे  की कलयुग में लोग साधना तो कर नहीं पाएंगे , भजन तो कर नहीं पाएंगे , और भगवान् तो सबका भला चाहते हैं ... नालायक पुत्र हो तब भी पिता तो चाहता है कि कैसे भी इसका जीवन तो आनंद से बीत जाये , सुखी रहे भगवन कृष्ण ने चाहा कि ये अमर कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाये , तो भगवन सुखदेव को तोते के रूप में , बल्कि अंडे के रूप में वहां उपस्थित किया ..तो विगलित अंडे के रूप में सुखदेव जी वहां थे भगवन शिव समाधि में पहुंचे और कथा सुनानी प्रारम्भ की

कौशिकी संगिता में लिखा है की श्रीमद भागवत की कथा ही अमर कथा है भगवान् शिव ने पारवती अम्बा को अमर कथा सुनाई ये तो हम बार बार सुनते रहते हैं , पढ़ते रहते हैं .. लेकिन अमर कथा कौनसी है .. .।तो वो वहां लिखा है कि  श्रीमद भागवत की कथा ही "अमर कथाहै , और भागवत में ऐसा लिखा है  -- --   गर्भ  गता  भूयाः   मुक्ति भागी संशयः   .. जिसने भागवत की कथा श्रद्धा से सुनली वो माँ के गर्भ में दुबारा नहीं आएगा यह शरीर छूटने  के बाद वह वहाँ पहुँच जायेगा , जहाँ से दुबारा फिर जन्म नहीं लेना पड़ेगा , सदैव आनंद रहेगा सुखदेव भगवान् भी यह कथा सुनने लगते हैं , पार्वती अम्बा सुनती जा रहीं हैं  , भगवान् शंकर के नेत्र बंद थे , समाधि में .. योग में स्थित होकर सूना रहे हैं ।भागवत समाधि भाषा कहलाती है , समाधि की भाषा है सभी लोग इसका अर्थ जल्दी नहीं समझ पाते ... ।अच्छा ! पारवती अम्बा हूँहूँ !  करती रहीं और दसवां स्कन्ध समाप्त हुआ तो नींद आगयी उन्हें सुखदेव भगवान् हूँ ! हूँ ! करते रहे और बारहवें स्कन्ध के बाद जब आँख खुली ... पार्वती जी सो रहीं थीं हूँ हूँ ! कौन कर रहा था ? पारवती जी से पूछा तो उन्होंने कहा प्रभु दशम स्कन्ध की समाप्ति तक , मैंने बहुत सावधान हो कर सुना .. पता नहीं क्या आपकी माया थी कि मेरी आँख लग गई पर हूँ ! कौन कर रहा था ... फिर देखा तो सुखदेव जी तोते के रूप में ... भगवान् शंकर ने चाहा इसको मार दें ! .. जो खूफिया होते हैं ..घुस पैठिये  उनको तो मार डालना चाहते हैं , तो भगवान् शंकर ने त्रिशूल उठाया , और चला दिया , सुखदेव जी वहां से भागे और वेद व्यास जी की पत्नी पिंगला के पेट में चले गए , वे बाल सुख रहीं थीं , उसी समय उनको जम्हाई आई पार्वती जी बाद में बोलीं भगवान् शंकर से .. "प्रभु ,  इसीलिए तो लोग आपको भोला शंकर कहते हैं , एक ओर तो आप कहते हो जो भागवत की कथा सुनले वो अमर हो जाता है ... और दूसरी ओर आप सुखदेव  को आप मारना चाहते हो .. जब वो अमर कथा सुन ही चुका है तो मरेगा कैसे !
ऐसा मान लो कि भगवान् कृष्ण का ही संकल्प है बारह वर्ष तक सुखदेव जी गर्भ में रहे , ऐसा शास्त्र कहते हैं , और वहीँ भगवत चिंतन , आत्म चिंतन करते रहे व्यास जी ने प्रार्थना की , कि भाई कौन ऐसा योगी , पत्नी के गर्भ में आगया जो बाहर आना ही नही चाहता सुखदेव भगवान् ने कहा की मैं बाहर तब आउंगा जब मुझे ये वचन मिल जाये कि भगवान् की माया मुझपर हावी नहीं होगी पैदा होने के बाद भगवान् की माया एक दम पकडती है

भूमि परत भा ढाबर पानी जनु जीवहि माया लपटानी

ये तीन इच्छाएं बड़ी जबरदस्त होती हैं , इन तीन इच्छाओं पर विजय पाना बहुत कठिन है वो तो ऊपर वाला कृपा करदे तो ठीक है , एक तो बेटे की इच्छा ... दुसरे धन की इच्छा .... और तीसरे समाज में सम्मान पाने की जो इच्छा है , ये हर व्यक्ति में होती है , और ये कटती नहीं ऊपर से वैराग्य भी हो जाता है , कुछ नहीं बेटे पोते कुछ नहीं ... भजन पूजन में भी लग जाते हैं .. और जरा सा संकट आजाये बेटे पोते पर ...छटपटा जाते हैं मायने इस ममता को काटना बड़ा कठिन है , अतिशय प्रबल देव तव मायाछूटे राम  करहु जो  दाया  , यह गुण साधन ते नहीं होए  , तुमहरी  कृपा पाव कोई कोई .. इश्वर की कृपा के बिना , प्रभु की माया पे विजय पाना बहुत कठिन है

अब मैं ये बताने जा रहा हूँ कि जिन्होंने चार वेदों का विभाग किया है , अठाहरे पुराणो की रचना की है , एक लाख श्लोकों वाला महाभारत बनाया है , हिमालय में बदरीनाथ से भी बारह मील ऊपर , सरस्वती नदी के किनारे बर्फ में रहकर जो भजन करते हैं वेदव्यास , उनके मन में भी पुत्र की ममता ने एक बार उनको हिल दिया .. बड़ा कठिन है कभी कभी ऐसा लगता की हमारी ममता ख़तम हो गई है , अब हमारा घर में कोई नहीं है .. और अब हम भजन करेंगे .. किन्तु वह सूक्ष्म ऐसी दबी रहती है कि समय पाकर एक दम उठती है

जब सुखदेव भगवान् प्रगट हुए , और थोड़े समय के बाद वे जवान हुए .. इतने सुंदर थे , भगवान् कृष्ण का चिंतन करते करते स्वयं कृष्ण स्वरूप ही होगये थे घुंगराले घुंगराले बाल , चाँद जैसा मुखारविंद  , लम्बी लम्बी आँखें , लम्बी घुटने तक उनकी भुजाएं ; शरीर एक दम कोमल ,भागवत में उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है |
अभी जनेउ संस्कार हुआ नहीं, कि सुखदेव जी महाराज घर से निकल के चल पड़े तप करने , कहते हैं मैं घर में नहीं रहूँगा भजन करूँगा सुखदेव जी घर से निकले , कि वेदव्यास के मन में ममता जाग उठी , कितना सुंदर पुत्र मिला , कुछ दिन और घर रह जाता तो अच्छा था .. पुत्र जा रहा है , अपने को रोकने की कोशिश कर रहे हैं दुनिया को उपदेश दे रहे हैं कि भजन करना चाहिए  ,पुत्र जा रहा है , अपने को रोक लेकिन नही रोक पाए , उठ कर दौड़ पड़े ... हा पुत्र ! हा पुत्र ! बेटा  थोड़े दिन के लिए रुक जा !! जब मह्रिषी वेदव्यास ने हा पुत्र   कहा , तो सुखदेवजी महाराज तो योगी थे , वृक्षों में समां गए , और उन्होंने वृक्ष के अन्दर से आवाज दी , हा पुत्र का उत्तर भी  हा पुत्र से दिया ... मायने वेदव्यास जी सुखदेव जी को पुत्र कह रहे हैं और सुखदेव जी वेदव्यास जी को पुत्र कह रहे हैं ।तो वेदव्यास जी ने कहा - बेटा तुम मुझे क्यों पुत्र कह रहे हो ? सुखदेव भगवन ने कहा व्यास जी से ... इस अनादि सृष्टि में , हम लाखों बार आपके पिता बन चुके हैं ... , और आप हमारे बने हों , तो स्थायी नाता कौनसा मानें ? आपके जेब में जो रूपया आया है बाबु ? वो सोचो तो जरा कितने जेबों से होके आया है ! और आगे कितने जेबों में जाना है , और जिसकी जेब में गया उसने अपना कहा ; मेरा कहा ; लेकिन वो किसीके पास टिका नहीं ... ये जीव भी नोटों की तरह , अनादि काल से चला रहा है , एक दूसरे से नाता जोड़ता और तोड़ता , ये किसी का अपना नहीं है   सुखदेव ने कहा व्यास जी से , जैसे मेरे पीछे दौड़ रहे हो , ऐसे भगवान् के पीछे लग जाओ बेड़ा पार हो जायेगा [ वृन्दावन बिहारी लाल की जय !!! ] , एक पुत्र के उपदेश से पिता को बोध हुआ .. व्यास जी वापस लौट आये; जिन्होंने परीक्षित जी को भगवत की कथा सुनाके बैकुंठ दिला दिया